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BRIEF(संक्षिप्त) HISTORY OF MAHARANA PRATAP(KING OF MEWAR)

BRIEF HISTORY OF MAHARANA PRATAP                                        (KING OF MEWAR)


♦️ जन्म - 9 मई, 1540 (ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया, विक्रम संवत् 1597) 
♦️ जन्म स्थान - बादल महल (कटारगढ़) कुंभलगढ़ दुर्ग 
♦️ पिता – महाराणा उदयसिंह
♦️ माता – जयवंता बाई (पाली नरेश अखैराज सोनगरा की पुत्री)
♦️ विवाह – 1557 ई. में अजबदे पँवार के साथ हुआ।
♦️ पुत्र - अमरसिंह
♦️ शासनकाल – 1572-1597 ई.
♦️ उपनाम - 1. ‘कीका’ (मेवाड़ के पहाड़ी प्रदेशों में) 2. मेवाड़ केसरी 3. हिन्दुआ सूरज
♦️ प्रथम राज्याभिषेक - 28 फरवरी, 1572 को महादेव बावड़ी (गोगुन्दा)
♦️ विधिवत् राज्याभिषेक - कुंभलगढ़ दुर्ग में हुआ जिसमें मारवाड़ के राव चन्द्रसेन सम्मिलित हुए।
♦️ प्रताप का घोड़ा – चेतक 
♦️ हाथी – रामप्रसाद व लूणा 

🔸हल्दीघाटी का युद्ध (राजसमन्द)       18 जून, 1576
🔸वर्ष 1576 की शुरुआत में अकबर मेवाड़ पर आक्रमण की तैयारी हेतु अजमेर आया और यहीं पर मानसिंह को इस युद्ध का नेतृत्व सौंपा।
🔸मुगल सेना का प्रधान सेनानायक – मिर्जा मानसिंह (आमेर)
🔸 सहयोगी सेनानायक - आसफ खाँ
🔸 राणा प्रताप की हरावल सेना का नेतृत्व - हकीम खाँ सूर 
🔸 चंदावल सेना का नेतृत्व - राणा पूँजा
🔸 मुगल सेना के हरावल भाग का नेतृत्व - सैय्यद हाशिम 
🔸 इतिहासकार बदायूँनी युद्ध में मुगल सेना के साथ उपस्थित था। 
🔸 राणा प्रताप के घायल होने पर झाला बीदा ने राजचिह्न धारण किया तथा युद्ध लड़ते हुए वीर गति प्राप्त की।
🔸 युद्ध में हाथी के वार से घायल राणा प्रताप के घोड़े चेतक की एक नाले को पार करने के बाद मृत्यु हो गई।
🔸 बलीचा गाँव में चेतक की समाधि बनी हुई है।
🔸 बदायूँनी कृत ‘मुन्तखब-उत्त-तवारीख’ में हल्दीघाटी युद्ध का वर्णन किया। 
🔸 इस युद्ध को अबुल-फजल ने ‘खमनौर का युद्ध’, बदायूँनी ने ‘गोगुन्दा का युद्ध’ तथा कर्नल टॉड ने ‘हल्दीघाटी का युद्ध’ कहा।
🔸 राजसमन्द में प्रत्येक वर्ष ‘हल्दीघाटी महोत्सव’ मनाया जाता है।
● दिवेर का युद्ध (अक्टूबर, 1582)  :-
🔸 कुँवर अमरसिंह ने अकबर के काका सेरिमा सुल्तान का वध कर दिवेर पर अधिकार किया।
🔸 कर्नल जेम्स टॉड ने इस युद्ध को ‘प्रताप के गौरव का प्रतीक’ और ‘मेवाड़ का मैराथन’ कहा।
🔸 5 दिसम्बर, 1584 को अकबर ने आमेर के भारमल के छोटे पुत्र जगन्नाथ कच्छवाहा को प्रताप के विरुद्ध भेजा। जगन्नाथ भी असफल रहा। जगन्नाथ की माण्डलगढ़ में मृत्यु हो गई।
🔸 जगन्नाथ कच्छवाहा की ’32 खम्भों की छतरी’ - माण्डलगढ़ (भीलवाड़ा) में स्थित है।
🔸 1585 ई. से 1597 ई. के मध्य प्रताप ने चित्तौड़ एवं माण्डलगढ़ को छोड़कर शेष सम्पूर्ण राज्य पर पुन: अधिकार कर लिया था।
🔸1585 ई. में लूणा चावण्डिया को पराजित कर प्रताप ने चावण्ड पर अधिकार किया तथा इसे अपनी नई राजधानी बनाया।
🔸चावण्ड में प्रताप ने ‘चामुण्डा माता’ का मंदिर बनवाया।
🔸 चावण्ड 1585 से अगले 28 वर्षों तक मेवाड़ की राजधानी रहा।
🔸 1597 में धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाते समय प्रताप को गहरी चोट लगी। जो उनकी मृत्यु का कारण बनी। 
🔸 मृत्यु - 19 जनवरी, 1597, चावण्ड 
🔸 अग्निसंस्कार - बांडोली 
🔸 प्रताप की 8 खम्भों की छतरी - बांडोली (उदयपुर) में खेजड़ बाँध की पाल पर।
🔸 प्रताप कालीन रचनाएँ – 
1. दरबारी पंडित चक्रपाणि मिश्र – विश्ववल्लभ, मुहूर्तमाला, व्यवहारादर्श व राज्याभिषेक पद्धति।
2. जैन मुनि हेमरत्न सूरी – गोरा-बादल, पद्मिनी चरित्र चौपाई, महिपाल चौपाई, अमरकुमार चौपाई, सीता चौपाई, लीलावती 
🔸 प्रताप द्वारा निर्मित मंदिर – 1. चामुण्डा देवी (चावण्ड)   2. हरिहर मंदिर (बदराणा)


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